कालेज के थे किस्से अजीब, अजनबी थे जो आये करीब ।
कुछ मस्त परिंदे से आये, थे बेपरवाह जमाने से ।
आँखों में सपनों के दहक लिए, जलते थे जो परवाने से ।।
कुछ बेकरार उड़ जाने को, कुछ आये टापर कहलाने को ।
कुछ की मंशा छा जाने की, कुछ आये थे धौंस जमाने को ।
कुछ पाना है ठान के आये थे, पर कुछ चेहरे घबराये थे ।
कुछ बड़बोले, कुछ इठलाते, कुछ बेखौफ़ कागभुषुंडी थे ।
कुछ के हाथों का वजन बड़ा, कुछ मन से बड़े फिरंगी थे ।।
कुछ जामवंत वरदानी थे, कुछ सियाराम से ज्ञानी थे ।
क्या खूब था अपना दल-बल वो, सबके सब बड़े तूफानी थे ।।
कुछ के नैन गिलहरी थे, हर वक्त किसी पर गिरते थे ।
था उनमें नशा मैंखानों का, ऑखों से सब कुछ कहते थे ।।
सावन बीते जीवन के चार, कुछ दिल की तस्वीर ना दिखलाये ।
तीन शब्द जादुई से, वो मौन तोड़ ना कह पाये ।
कुछ कह आये, कुछ ठहर गये, कुछ के कहने में प्रहर गये ।
दिल की बाजी कुछ जीत गये, हारे मन से कुछ मीत गये ।।
पर सबकी एक कहानी थी, आँखों में झलकती इक रानी थी ।
इक चाँद छुपा था हर मन में, सबने पाने की साजिश की ।
पर व्याकुल मन ना समझ सका, हर दिल की वही तो ख्वाहिश थी ।।