दहेज

सुंदर थी, सुशील थी, प्यारी और मासूम थी,
चंचल थी और नादान थी,
अपने माता-पिता की तो वह जान थी।

बहन का अरमान और भाई का स्वाभिमान थी,
अच्छा बोलती थी, अच्छा लिखती थी, अच्छा पढ़ती थी,
अपने अध्यापकों की वह नाज़ थी।

हर चीज़ में अव्वल थी,
मोहल्ले मे जाकर पता चला,
की वह तो अपने मोहल्ले की पहचान थी।

फिर ना जाने क्या भूल हुई,
आखिर ऐसी क्या चूक हुई,
जला दी गयी अपने ससुराल वालो की हाथों,
क्यूंकि दहेज़ में दी गयी उसकी सूटकेस खाली थी,
और वह पगली इस अपराध से अनजान थी।
                       


तारीख: 15.06.2017                                    मनीषा श्री




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