तेरी वो चिट्ठियां ,
जिसमे छुपे थे हजारो सपने ,
दबे थे जिनमे लाखो अरमा ,
कुछ प्यारी सी यादें
कुछ लम्बी मुलाकाते ,
कल उनकी चिता संग
मैं भी जल गया .
टटोला घंटो फिर उस राख को,
कहीं कोई सपना कोई अरमा
अभी सजीव तो नहीं....
नहीं, वो बस गर्म राख थी
समय के साथ वो भी ठंडी पड़ी ,
लम्बी साँस ली और मैं चल पड़ा
नई मंजिल की तलाश में निकल पड़ा
चला नहीं कदम चार की मैं थक गया
फिर से अतीत के पन्नो में भटक गया
आया था जला के जिन्हें ही मैं अभी
उन्ही सपनो में फिर से खो गया
अभी मैं जिन्दा हूँ ... पुकारा किसी ने ,
था कौन वो ...
आग में जल के भी बच गया ,
दिल ही था मेरा ...
जो झुलस कर निकल गया