दुनिया बहुत ही अजीब है,
सबके सब बहुत गरीब है;
लोगों के अपने नसीब है,
फिर भी सब अपनों के करीब है... |
सबको चाहिए अपनी सुविधा,
दुनिया की कोई सुध भी नहीं;
अपनी तरक्की की ही है परवाह,
इसलिए सब अपने मे ही हैं तबाह...|
पर की चिंता अब पाप है,
दूसरे की मदद जैसे अब अभिशाप है;
सब अपने में ही इतने सुलझे हैं,
लगता है जैसे सब अपने से ही उलझे हैं...|
कभी गैरों के लिए भी वक़्त निकालो,
उन्हे भी अपना ही बंधु मानो;
जीवन है बस दो पल का खेल,
कर लो गैरों से भी अपनों सा मेल..