एक अनंत  इंतज़ार

सुनो जी,  
कभी एक आधा  बार भी,  
तुमने  हाल पूछा होता,  
कि एक अनंत  इंतज़ार कैसा लगता  है।  

वो इंतज़ार जो पलकों पर ठहर जाता है,  
हर आहट पर दिल का धड़कना,  
ना जाने किस उम्मीद में,  
हर घड़ी, हर मिनट गिनती रहती है बातें।  

काश, तुम जान पाते कि कैसे  
खिड़की से झाँकती हैं ये आँखें,  
एक चेहरे की बाट जोहती,  
और हर बार खाली हाथ लौटती हैं।  

वो इंतज़ार जिसमें दिन और रात का  
फर्क मिट जाता है,  
जब हर राह चलने वाला लगता है तुम सा,  
पर है तो कोई और ही।  

क्या कभी महसूस हुआ है तुम्हें,  
कि कैसे एक खामोश दुआ बन जाती है ज़िंदगी,  
बस तुम्हारे एक दीदार की आस में,  
हर रोज़, हर पल, सिर्फ तुम्हारी राह देखते।  

जब तबीयत मेरी बार-बार तुम्हें पुकारती है,  
तो काश, तुम भी महसूस कर पाते,  
कि ये बेहिसाब इंतज़ार कैसा होता है,  
एक बेचैनी, एक उम्मीद, जो सिर्फ तुमसे होती है।  


तारीख: 10.12.2024                                    मुसाफ़िर




रचना शेयर करिये :




नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है