फैंटसी

और अब , जब मैं 
बालिग हो गया हूँ 
सोचता हूँ कि -
सरकारें , मेरे अँगूठे 
के नीचे ही, बनती हैं , बिगडती हैं 
अगूँली पर लगी सियाही 
भविष्य ,

तब मैं निश्चित हूँ 
और तकिये की बगल में , सोचता हूँ 
कि जर हो , जौरू हो , जमीन हो 
गाल पर एक महीन सा 
चुंबन भी जरूर हो
और मेरे भाई !
पास से गुजरने वाले को
इसका पूरा यकीन हो,

पर वो, बहुत चालाकी से मुझे
लाकर , वहां खडाकर देता है 
यहां आदमी और कुत्ते के 
भूूख को लेकर , एक जैसी
पूँछ है |
                  


तारीख: 22.06.2017                                    सुशील कुमार शैली









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