एक वक़्त के बाद लिखने को जी चाहा है,
खुद को शायद एक वक़्त के बाद हमने साथ पाया है..
तो क्यों न बात भी ऐसे वक़्त से दूरियों की हो,
और क्यों न बात ना लिख पाने की मजबूरियों की हो..
मसलन वक़्त ही कहाँ है खुद के लिए,
हम तो जी रहे हैं दूसरों की फिक्र के लिए..
भले अख़बारों से करें, या करें फेसबुक फीड्स से..
न्यूज़ से करें या हर पल आ रहीं लाखों ट्वीट्स से..
बस मशरूफ हैं जानने में कौन क्या कर रहा है,
खुद के लिए जनाब हम पर वक़्त ही कहाँ रखा है..
है कहाँ फुरसत जो खुद से बतला पाएं,
किसी और की नहीं खुद की फिक्र में हम जुट जाएँ..
कर क्या रहें हैं सोचे पल भर भी,
है क्या हासिल ये सब कुछ जान कर भी..
भले भूचाल हो, या हो जंग कोई..
कौन है जो पढ़ने के इलावा करे भी कुछ कोई..
पुरे दिन मशरूफ हैं जानने में सब कुछ,
पर फर्क़ क्या है जानकर भी जब करें ना कुछ..
सिर्फ लाइक्स और शेयर में खुद को उलझा रखा है,
ज़िन्दगी की असलियत से हमने खुद को जुदा रखा है..
न वक़्त है दोस्तों के लिए, न फुरसत बातों की है..
अब तो बस लैपटॉप की रौशनी ही बन चुकी चांदनी रातों की है..
पहले खत थे फिर मेल्स हुए, और अब बात चैट पर आ चुकी है..
शॉर्टकट्स और स्लैंग्स में बची कूची वोकैब भी जा चुकी है..
खुल कर सोचें किसी एक शक्स के लिए भी,
वो वक़्त जा चूका है..
अब तो मल्टीप्ल टैब्स पर मल्टीप्ल लोगो से,
मिनी सेन्टेन्सेस में माइक्रो टॉक्स का वक़्त आ चुका है..
अब कोई एक भी नहीं रहा जिससे हाउ आर यू का जवाब भी सच में दें..
आई एम फाइन बोलना, इस कदर हमारी आदत में आ चूका है..
नहीं है फुरसत के सुबह या शाम की सर्द हवाओं का ज़िक्र भी, चाय पर हो..
अब तो इनके लिए भी स्माइली और स्टीकर आ चूका है..
मैं जनता हूँ, कुछ को ये बातें नासाज गुज़रेंगी..
पर ज़रूरी है इस तरह जुड़ना सबसे मजबूरी हो हमारी आदत नहीं..
क्यूंकि कितना भी कहलो लिखकर चैट्स में, जो किसी की नज़रों से,
किसी की आवाज़ से मिल सकती है वो इनमें राहत नहीं..
मैं भी इससे सोशल मीडिया से ही शेयर करूँगा,
पर तुम से लाइक्स की या कमेंट की उम्मीद नहीं करूँगा..
करूँगा गुज़ारिश के फ़ोन कर लेना यारों,
अगर सही ही लगी है बात तो खुद बोल देना यारों..
चंद शब्दों में खुद को समेट मत लेना,
वक़्त निकाल कर क्यों ना उन्हें खुद कह लेना..