मन का क्या जितना मिला उतना और प्यासा
तन का क्या जितना ढला दिल और जवां सा।
क्षीर सागर सी इच्छाएं अथाह और अनंत हैं
इच्छा का क्या जितनी पूरी उतनी और आशा।
ये धन दौलत भगाती रहती नर को आजीवन
जितना जीतता गया उतना खेला और पांसा।
अनगिनत उपलब्धि है, हर एक पायी ना जाती
सब पाने की फितरत में ही, जीवन को फांसा।
और पाने की चाह में लुट जाता कभी पास का
जितना छुपाओगे जग से उतना और तमाशा।
इच्छा हो तो सीखने की जो कभी ना खत्म हो
जितना ज्ञान हासिल करो उतनी और जिज्ञासा।