जागो भारत अब आँखे खोलो..
जाति-धर्म के भेद पर अब भी हो रहा बवाल है...
द्रौपदी को अपमानित करती शकुनि की हर चाल है,
हाल देख तेरे कृष्ण का, शर्म से मुँह लाल है
इस गुलामी से बचाने अब न गांधी आएंगे, सुन लो
जागो भारत अब आँखें खोलो!
गेहुआं पहना हर जानवर अब संत है..
धरती की कोख सूनी पर मौसम बसंत है,
पथ यही चलते रहे तो निश्चित ही अंत है
इस डगर को छोड़ नई राह कोई चुन लो
जागो भारत अब आँखे खोलो!