उन्मुक्त हास जैसे निर्झर
निर्मल निश्छल चंचल बचपन
एक मन्द हास का सम्मोहन
जब चेहरा हो मन का दर्पण
एक मुखर मौन में सिमटा स्वर
चितवन की गागर में सागर
झुकती पलकों का आमंत्रण
लहरों का तट को मौन समर्पण
मन की नीरवता भंग करे
जब दिव्य तरंगों का स्पंदन
जब भाव,चेतना,चिंतन का
हो भव्य त्रिवेणी-संगम
अनुभूतियाँ बन नीलकंठ
करें अमृत-सृष्टि विष पीकर
आनंद-वृष्टि आँसू पीकर
हों प्राण तृप्त वह क्षण जीकर
जब काल-पात्र से छलके कोई
स्वाति-बिंदु सा दुर्लभ पल
जीवन-सीपी में सिमट-सिमट
हो धन्य दिव्य मोती में ढल
नैराश्य-तिमिर को भेदे जब
एक उषा-किरण सी स्वर्णिम आशा
ऐसे अद्भुत संयोगों में
जीवन ढूँढे नवपरिभाषा