कहूँ अंतर की बात

 कहूँ अंतर की बात
गुजरा जीवन गहरी रात

धीर छूटता नीर बरसता
चुप ज्यूँ भोर की उजास
चुभते भूले से व्याघात
आज कहूं अंतर की बात

नीरस वाणी सूखी आशा
गहरे छुपी प्रेम पिपासा
अपनों से मिले आघात
आज कहूं अंतर की बात

साथी जीवन बिता आधा
बिन जाने अपनी मर्यादा
क्यों बिखरा मन अवसाद?
आज कहूँ अंतर की बात

केलि करती है अभिलाषा
मन कीअपनीहै परिभाषा
जागा जीवन नव प्रभात
आज कहूँ अंतर की बात

नेह ऊपजा मै जब बूडा
अमिय बन गयाअहसास
पाया जब अपना विश्वास
आज कहूँ अंतर की बात

तुम जागे ?जब जग सोया 
पाया तुमने क्या उल्लास
ऋत जाना जब मिटा त्रास
आज कहूँ अंतर की बात
गुजरा जीवन गहरी रात


तारीख: 22.03.2018                                    विजयलक्ष्मी जांगिड़




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