कलियाँ फ़िर से खिल जाएँ


ये कलियाँ है क्यूँ मुरझाई सी,,
है गर्म उदासी छायी सी|

बचपन है पर कोई खेल नहीं,
ये चमन है कोई जेल नहीं|
मन किंचित भी मुस्काता नहीं,
सब पाकर भी कुछ पाता नहीं|

याद है मुझको-
कुछ फूल हैं और कुछ काँटे हैं,
जो तक़दीर ने बाँटे हैं

गर काँटे मुझको मिल जाएँ,
तो कलियाँ फ़िर से खिल जाएँ|
 


तारीख: 07.12.2019                                    विवेक द्विवेदी









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