खलिश-ए-ज़िन्दगी

बांटता रहता तो ख़त्म हो चुका होता कब का
प्यार को अक्सर ही छुपा-छुपा के रखता हूँ मैं !!

जलता रहता तो खाक हो चुका होता कब का 
एहतिहातन ही बुझा-बुझा सा रहता हूँ मैं !!

दिखता रहता तो बदनाम हो चुका होता कब का
खुद को खुद में ही दफना के रखता हूँ मैं !!

जीता रहता तो मर चुका होता कब का
आदतन ही साँसें लेता रहता हूँ मैं !!


तारीख: 18.06.2017                                    मनोरंजन चौधरी









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