कोई आये यार जो मुझे

कोई आये यार जो मुझे 
फ़िर से गाँव की उस बेबाग्पन गलियों में ले चले 
जहाँ एक साथ सब 
मिल जुल के रहते थे

शादी एक के घर होती खुश पुरा गाँव होता 
मातम एक के घर होता रोता पूरा गाँव था 
अब कोई नही पुछता फलाने क लइका हवा बाऊ 
अब तो बस, कहाँ से हो भाई ?

कोई तो आये जो मुझ गाँव कि उस बेबाग् गलियो में ले चले 
जहाँ लोग सिर्फ हम से ये पूछे 

और बतवा का हाल बा हो 
भैया चाचा काका दादा जो भी हो 
ले चल मेरी ज़िदगी मुझे वापस
थक गया हूँ इस भीड़ भरे आवाम मे


तारीख: 23.06.2017                                    रजत प्रताप




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