कुछ है, मुझमे और तुम में
कुछ गहरा, बहुत ही ज्यादा गहरा
कुछ है जो टपकता है हरदम
इन आंसुओं का सहारा लेकर
कुछ वैसा जो कैद-कैद है
लेकिन बिलकुल भरा हुआ
कुछ ऐसा जैसे सोने का पिंजरा
जैसे शायद बचपन बंद हो
कुछ ऐसा जो गले तक हो
मगर अटक जाता हो थूक में
कुछ वैसा जैसे कोई पुराना बांध हो,
एक तरफ
गहरा, बहुत ही ज्यादा गहरा
एक तरफ दरारों से बहते आंसू
मुझे डर है,
इसके किसी दिन टूट जाने का।