कुछ तो है हममें

कुछ तो है हममें 
जो सदियों से
दुत्कारी जाती हैं। 

कुछ तो है हममें 
जो अपनी पहचान 
नहीं बना पाती हैं।
 
कुछ तो है हममें 
जो पुरुष को हम 
इतना डराती हैं। 

कुछ तो है हममें 
जो हमारे लिए 
जंजीरें बनाई जाती हैं।
 
कुछ तो है हममें 
जो हर बंधन में भी 
हमेशा मुस्कराती हैं। 

कुछ तो है हममें 
जो अपमान का हर घूंट 
चुपचाप पी जाती हैं। 

कुछ तो है हममें 
जो हमसे हमारे 
अधिकार छीने जाते हैं। 

कुछ तो है हममें 
जो हमसे पुरुष इतना 
ख़ौफ़ खा जाते हैं। 

कुछ तो है हममें 
जिससे डरकर हमेशा 
हमारे पर काटे जाते हैं।
 
कुछ तो है हममें 
जो हमारी आज़ादी से 
सब डर जाते हैं। 

कुछ तो है हममें 
जो हमारी आज़ादी पर 
पहरे लग जाते हैं। 

कुछ तो हैं हममें 
इसीलिए तो अपने नाम से 
हमारी पहचान छिपाते हैं।
 
कुछ तो है हममें 
हमें हमारा नाम देने से 
दुनिया वाले घबराते हैं। 

कुछ तो है हममें 
जिसे मिटाने को 
हमें रौन्द जाते हैं। 

कुछ तो है हममें 
जिससे यह दिल ही 
दिल में ख़ौफ़ खाते हैं। 

कुछ तो है हममें 
जिसे यह दुनिया वाले 
सदियों से झुठलाते हैं। 


तारीख: 02.07.2017                                    लक्ष्मी जयसवाल अग्रवाल









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