क्या हम मिट्टी के खिलौने हैं

क्या तू एक अल्पवय, अबोध बालक,
और हम तुझे प्रदत्त क्षण–भंगुर मिट्टी के खिलौने हैं ?
तू है नटखट, चंचल प्रतिपल
और तेरे समक्ष हम बौने हैं ?

जब चाहे खेल लिया हमसे,
जब चाहे फ़ेंक दिया|
अपना मन बहलाया हमसे,
और हमें ही दर्द अनेक दिया|

तुने क्या सोंचा, हम तेरे हाथों में फंसे,
तेरा विरोध क्या कर पायेंगे?
मिट्टी से ही निर्मित, मिट्टी पर ही जीवित,
फिर मिट्टी में ही मिल जायेंगे?

मिटटी से निर्मित हम,
पर फौलाद का आत्मविश्वास है|
मनुष्य हैं हम भी, सिर्फ आप नहीं,
हमारे शरीर में भी लाल रक्त और अस्थियों का वास है|

किसी की खैरात नहीं,
हमारे पास भी ईश्वर-प्रदत्त जान है|
तो क्यूँ हम किसी की गुलामी करें?
जब हमारे पास भी जिंदगी और अरमान हैं|


तारीख: 19.06.2017                                    विवेक कुमार सिंह









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