लौ

मगरिब में डूबता सूरज और खिजां की ये शाम भी कहा अब ढलती है

उम्मीदों के बोझ तले हिम्मत हर रोज मोम सी पिघलती है

 

एहतिमाल ज़िन्दगी वाले पत्तो सी चाल ज़िन्दगी चलती है

कब छोड़ जाएं साथ कोई, ना जाने अपनी क्या गलती है 

 

बहिश्त का रास्ता छोड़ चले, यहां से दोजख की राह निकलती है

अब राह की परवाह क्या करे हर रात सुकून निगलती है

 

तक्सीर ना हो जाए खुदा कोई तुमसे,किस्मत बड़ी ज़ोर फिसलती है

बटोर के हिम्मत चल रहा हूं क्योंंकि दिल में छोटी सी लौ जलती है ।।


तारीख: 20.08.2019                                    रुद्राष्टक पांडेय




रचना शेयर करिये :




नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है


नीचे पढ़िए इस केटेगरी की और रचनायें