आँख खुली एक हलचल सी कमरे में है,
हज़ारों चेहरे हैं होने को,
फिर भी कुछ कमी सी है॥
बाबा को भी वक़्त कहाँ,
उनकी आँखों में क्यों नमी सी है॥
क्यों कोई मुझसे नहीं कर रहा बात,
कोई शैतानी भी मैंने नहीं की आज॥
दादी तुम तो कुछ बोलो,
आखिर क्या बात हुई॥
मन मेरा घबरा रहा है,
आज कोई आकर मुझे क्यों नहीं सराह रहा है॥
दादी कुछ बोली नहीं,
सीने से लगा मुझे अब वो भी रोने लगी,
मन में मेरे भी अब हलचल सी होने लगी॥
देखा मैंने जब अम्मा को,
सफ़ेद चादर ओढे हुए,
बंद थे दो नयन वो उनके,
कुछ न बोल रहीं थी वो,
लगता जैसे कुछ सोच रही थी वो॥
दिल बेजान सा था मेरा ,
मन खोखला होने लगा था,
सरलता कुछ नहीं थी उन क्षणो में
हर पल व्यतीत होता जैसे,
हथोड़े की चोट लगने लगा था॥
अरे! कहाँ जा रही हो अम्मा तुम,
क्यों तुम लोग हो उन्हें उठाये,
माँ तुम तो सो रही हो,
काश मुझे भी नींद आ जाये॥
तुम पास क्यों नहीं हो माँ,
आज मन बहुत उदास है,
भूख मुझे लगती कहाँ,
और न लगती मुझे प्यास है॥
तुम्हारे हाथ से खाया निवाला,
अमृत सा शीतल मुझको लगता था॥
हाथ तुम्हारे पकड़,
मैं पग-पग चलता था॥
संग तुम्हारे कितने खेल खेला हूँ मैं,
तुम्हारे बिन कितना अकेला हूँ मैं॥
प्याले में दूध भरकर पीना सिखाया तुमने,
जैसे सब पी पाते है,
क्या कहूँ वो दिन मुझे कितने याद आते है॥
आज जब मन घबराता है माँ,
तो बहुत रोना आता है,
तुम हो ही नहीं यहाँ,
तो मुझे गोद में बिठा के चुप कौन कराता है॥
अब खीर में वो स्वाद कहाँ,
जो तुम्हारे स्वाद से बनती थी,
जब जब प्याला खाली होने लगता,
वही चीज़ मुझे बड़ी खलती थी॥
आज कढाई जलती रहती है, माँ
पर किसी को ध्यान नहीं,
मन मेरा बहुत अकेला है, माँ
पर कोई परेशान नहीं॥
माँ जब तुम हो मेरे ख़्वाबों,
मेरे सपनों में,
कहाँ ढूंढ पाऊँ मैं तुम्हे इन अपनों में,
आज तस्वीर में तुम्हे मुस्कुराता देख,
मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है,
कैसे यह बतलाऊं तुमको मैं, माँ
याद भी खाली आती है और खाली ही लौट जाती है