मैं लिखती हूँ

जिन्दगी और जिन्दगी की समझौते 
मन पर बोझ बढ़ाते है तो 
मैं लिखती हूँ 

यूँ भी तो अरमान नहीं फलक के 
चांद और सितारो की 
पर जब मेरी मुट्ठी भर ख्वाहिशें 
तरसती है तो 
मैं लिखती हूँ

तुम्हें जानने और समझने मे 
जाया मेरी सारी कोशिशें 
आँखों से छलकने लगती है 
जब इनको छुपाना हो तो 
मैं लिखती हूँ 
 
कोई बात हो या कोई उलझन 
या रिश्तो का कोई गांठ 
या दुनियाँ की दुनियादारी 
मन को दुखाती है तो 
मैमैं लिखती हूँ

मैं खुशी के प्यार के गीत भी लिखती हूँ 
हमेशा दर्द ही नहीं 
मेरे लिखने के प्ररेणा 'तुम' 
तुम्हारा एहसास बयां करना हो तो 
मैं लिखती हूँ ।।                                 


तारीख: 10.06.2017                                    साधना सिंह









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