फिर आई दीवाली
दीपों का त्यौहार मना ,
माटी के दीपक
घृत-तेल भरा
डुबो वर्तिका उसमें
स्पशं पुंज अग्नी धरा ,
दीपक एक जलाना साथी
दीप संदेशा सुनाना साथी,
एक हमारा , एक तुम्हारा
दीप जले चमके जग सारा ,
कह गया कवि "शिवा"
कितने दीप जलाऊँ द्वारे ,
मन की ज्योति
बुझी हुयी जो
मिलकर आओ इसे जलायें
दीपों का त्यौहार मनायें ,
कहने दो जो कहते हैं
दीप तले अँधेरा बसते हैं,
मन के दीपक तुम जलाओ
ख़ुशियों का त्यौहार मनाओ,
थाल सजाओ,दीप जलाओ
फुल झड़ियों की चिनगारी से
हर अॉगन को चमकाओ
ज्योति पर्व दीवाली का
मन के दीपक तुम जलाओ ||