सब
अपने होने को
तोलते है जाति से
अपने 'सबसे श्रेष्ठ' धर्म से
धन जो कमाया गया हेन तेन से
अकड़ते है अपनी बटोरी प्रतिष्ठा से
जबकि ढाई किलो के आस पास ही
सब के सब जन्मते हैं
और इतने ही बाकी रह जाते हैं
अक्सर मरने के बाद।
कितना अजीब है न
यूँ मानव होना,
मानव होने के अलावा
दंभी मानवों में बटे होना।