\"मौसम के मुक्तक\"

1.) हर पहेली का हो हल, ज़रूरी नहीं,
सब्र का मीठा हो फल, ज़रूरी नहीं,
सच कहूँ तो है सब कुछ अनिश्चित प्रिये,
आज जो है वो हो कल, ज़रूरी नहीं।

2.) सारे तीरथ में जाकर भी क्या फायदा,
रब को घर में बसाकर भी क्या फायदा,
मैल मन का न धोया जो तुमने अगर,
फिर तो गंगा नहाकर भी क्या फायदा।

3.) भाव एका का‌ दिल से धुला इस क़दर,
अर्थ इंसानियत का भुला इस क़दर,
कोई रक्तिम तो कोई हरित हो गया,
रंग नफ़रत का मन में घुला इस क़दर।

4.) रात में चाँद-तारों की लोरी बनी,
जोड़े सारे जो बंधन वो डोरी बनी,
साथ बढ़ती रही हर डगर, हर पहर,
नारी राधा बनी, नारी गौरी बनी।

5.) लड़खड़ाता रहा  पर मैं बढ़ता रहा,
धैर्य धरकर  अचल पर मैं चढ़ता रहा,
प्रीत की प्यास में, जीत की आस में,
जुगनू बनकर अंधेरे से लड़ता रहा।

6.) रास्ते थे कठीन, और कठीन हो गए,
घर से निकले बिना कितने दिन हो गए,
एक विषाणु ने ऐसा जो ढाया कहर,
जैसे बोतल में बंद सारे जिन्न हो गए।

7.) मन में है वेदना, फिर भी चीखते नहीं,
ये विरह के है आँसू, जो दिखते नहीं,
चोट खाए हुए हैं हृदय हर मगर,
प्रेम लिखते हैं सारे, दर्द लिखते नहीं।

8.) भीड़ में कोई भी ना हमारा मिला,
डूबती नाव को ना सहारा मिला,
यूँ तो लाखों जतन किए हमने मगर,
प्रेम की नाव को ना किनारा मिला।

9.) प्रेम की डगर पे संग बढ़ गए,
संग-संग एक कथा यूँ गढ़ गए,
हाल प्रेम में हमारा ये हुआ,
खाली ख़त भी सादगी से पढ़ गए।


तारीख: 21.03.2024                                    मौसम कुमरावत









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