मौत भी कितनी अजीब होती है
घर घर नाम बदलती रहती है
किसी घर केहर के नाम
तो किसी घर मौत के लहर के नाम
किसी के घर बुजुर्ग के मरने की खुशी के नाम
तो किसी घर नव युवक क़े खोने के गम के नाम
मौत भी कितनी अजीब होती है
धर्म धर्म नाम बदलती रहती है
मुसलमान मरे तो इंतेक़ाल
हिन्दू मरे तो स्वर्गीय
नेता मरे तो देश-क्षति के नाम
आम इंसान मरे तो गुमनाम मौत के नाम
सिपाही मरे तो शहीद के नाम
मौत भी कितनी अजीब होती है
चेहर चहरे नाम बदलती है
रजत सिंह ये बात कह रहे है सभी से
रख लो मित्रो अभी से
अपनी मौत का नाम
न जाने कब किस तक पहुँच जाये
ये किस नाम क साथ