मेरी कविता
मानव मस्तिष्क से
मानव बस्ती तक पहुँचने की
सींढ़ी है।
आदमी को आदमी होने का
हूनर सीखाती कविताएँ
उसके भावावेग को उद्वेलित कर
उसे सच्ची राह पर
चलने को
घचेटती हुई कविता
कहीं टकराकर बिखर जाती है
और आगे
एक धूँधलाया हुआ आकाश है
कहीं उद्दीप्त सूरज नहीं है
केवल अँधेरा है
मेरा कपोलकल्पित मानव
वहीं खो गया है
मैं हर काव्य पंक्तियों में
बार बार
उसे ढूँढ़ता रहता हूँ।