मुझसे बिछड़ के आप भी रोएँगे बहुत

मुझसे बिछड़ के आप भी रोएँगे बहुत
छुपा-छुपा के ही दामन भिगोएँगे बहुत

ये तालुक्कात पल दो पल का तो नहीं
जब आप समझेंगे तो शोर उठाएँगे बहुत

क्या जवाब देंगें सूखे लबों,बेसुर्ख गालों का
आईने से खुद का ही चेहरा छुपाएँगे बहुत

हर शाम चाँद निकलने का इंतज़ार होगा
और फिर उसी गली में दौड़ के आएँगे बहुत

मत पढ़िएगा मेरे पुराने ख़तों को यूँ ही
वर्ना बेवजह खुद को तड़पता पाएँगे बहुत


तारीख: 26.07.2019                                    सलिल सरोज









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है