आज उठी है कैलाश से हुँकार
भूत दे रहा भविष्य को धिक्कार !
जिसको तुमने हटा दिया
पास हमने बिठा लिया !
जिससे तुमने बैर किया
हमने उसका खैर किया !
स्वर्ण पाश की जंजीरो में
तुमने खुद को बाँध दिया !
तुझको हर रूप में
रहने को हमने माँद दिया !
दृष्टि तूने त्राटक पायी
अहं दंभ में जीवन गवाँयी !
रिस्ते तूने लाख बनाँए
खुद कितने अरमान जलाँए !
हाँ, मै मूरख बैल बना
नहीँ किसी का रखैल बना !
तेरी मुक्ति मेरी आशा
पूरा जीवन रहा तू प्यासा !
त्याग के तेरे छद्म आवरण
पूज बैठा मैं पत्थर का कण !
धर्म तो तूने बहुत बनाया
पर अंतिम निष्कर्ष कुछ ना पाया !
सोच समझ कर छुना हाला
क्योंकि ये हैं मेरा निवाला !
जब स्वर्ण पाश तू तोडेगा
नाता मुझसे जोडेगा !
मत बनना तू अभिमानी
बना रहेगा सत्य का ज्ञानी !!!