ओ रे मन तू क्या चाहे

ना तन्हाई में तू खुश है, ना महफिल में हॅंस पाता
बंद आँखों में ख्वाब सजा कर क्यों पूरा ना कर पाता

एक पल में वो अच्छे लगते, फिर उनसे ही लङ जाता
चाहे उनको सब समझाना फिर क्यों कुछ ना कह पाता

जो बसते तुझमे ही हर पल, क्यों उनको ढूंढा करता
मंदिर मस्जिद भटक भटक कर रो रो कर पूजा करता

कहा किसी ने तू चंचल है, एक अबोध बालक जैसे
फिर क्यों रोता तन्हाई में, कहता कुछ भी ना सबसे

जब खुश हो तो दुनिया अच्छी, रूठ गया तो जग ना भाए
बस मुझको एक बात बता दे, ओ रे मन तू क्या चाहे
 


तारीख: 29.06.2017                                    प्रीति मिश्रा









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है