पहलगाम की वादी रोई, बैसरन ख़ूँ से लाल हुआ,
जन्नत में मेहमानों पर, ये कैसा क़हर, बवाल हुआ?
ढूंढ रहे थे चैन-ओ-अमन, वो मासूम से चेहरे थे,
कायराना गोलियों ने फिर, सारे सपने छीन लिये।
इंसानियत शर्मिंदा है, ये वहशत है, धिक्कार है,
निहत्थे पर्यटकों पर क्यों, कायरता का ये वार है?
घाटी का दिल ज़ख़्मी है, हर आँख में बहता पानी है,
मिट्टी पर बिखरा ख़ून ये, शैतान की नई कहानी है।