पक्ष

स्त्री की उत्पीड़न की 
आवाज टकराती पहाड़ो पर
और आवाज लौट आती
साँझ की तरह 

नव कोंपलें वसंत मूक बना 
कोयल फ़िजूल मीठी  राग अलापे 
ढलता सूरज मुँह छुपाता 
उत्पीड़न कौन  रोके 

मौन हुए बादल 
चुप सी हवाएँ 
नदियों व्  मेड़ो के पत्थर 
हुए मौन  
जैसे साँप सूंघ गया 

झड़ी पत्तियाँ मानो रो रही 
पहाड़ और जंगल कटते गए 
विकास की राह बदली 
किन्तु उत्पीड़न की आवाजे 
कम नहीं हुई स्त्री के पक्ष में 

बद्तमीजों  को सबक सिखाने 
वासन्तिक  छटा में टेसू को 
मानों आ रहा हो  गुस्सा 
वो सुर्ख लाल आँखे दिखा 
उत्पीड़न  के उन्मूलन हेतू 
रख रहा हो दुनिया के समक्ष 
वेदना का पक्ष 


तारीख: 29.06.2017                                    संजय वर्मा "दर्ष्टि "









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