चुभते नहीं आह के खंजर फलक तक
बंद दरवाजे हुई खामोश दस्तक
प्रार्थना के फूल लेकर आए थे
ले चले अवमानना के कुश-कंटक
दिग्भ्रमित है भक्त्मन, सहमा हुआ
देवता पत्थर के बुत अन्यमनस्क
किस विषम आराधना के धूम्र हैं?
दृष्टियां कोहरायीं, वाणी में धसक
गर्व से उत्तुंग न श्रद्धा से नत
म्लान लेकिन झुक रहा हत्मान मस्तक