प्रभु


चुभते नहीं आह के खंजर फलक तक

बंद दरवाजे  हुई खामोश दस्तक

 

प्रार्थना के फूल लेकर आए थे

ले चले अवमानना के कुश-कंटक

 

दिग्भ्रमित है भक्त्मन, सहमा हुआ

देवता पत्थर के बुत अन्यमनस्क

 

किस विषम आराधना के धूम्र हैं?

दृष्टियां  कोहरायीं, वाणी में धसक

 

गर्व से उत्तुंग  न श्रद्धा से नत

म्लान लेकिन झुक रहा हत्मान मस्तक


तारीख: 17.12.2017                                    राज हंस गुप्ता




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