प्रकृति का रौद्र रूप

लोगो का जीवन देखो फिर से डगमगाया है।
बािरश का रूप धरकर प्रकृति ने कहर बरसाया है।

कई कलिवत हुये होगें कितनो पर मृत्यु का साया है।
कितनो के घर उजड़ गये कितनो ने अपनो को गँवाया है।

कितनो की आशायें टूटी कितनो को रूलाया है।
प्रकृति का रौद्र रूप देख फिर से दिल घबराया है।

विकास के असंतुिलत रूप ने फिर से प्रकृति  को उसकाया है।
प्रकृति ने संतुलन बनाने को भयावह डंडा चलाया है।
फिर से देखो प्रकृति ने रौद्र रूप दिखलाया है।


तारीख: 10.06.2017                                    आशुतोष









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