राख और आग

ठंडी आग हूँ मैं,
जो सिर्फ रौशनी फैलाती है , जलती नहीं । 

ठंडी आग, रात की तारों की तरह ....  
जब तुम मुझे बहुत दूर से देखोगे। 

पर मेरे अंदर की दहक को ,
बिना स्पर्श के छू नहीं सकते । 

और क्या करोगे छूकर ?
ये आज मुझे जलाती है,
कल तुम्हें भी जलाएगी । 

मर्ज़ी तुम्हारी,
सोना हो तो तपना चाहोगे,
राख हो तो चुप रहना । 

क्योंकि राख को तो 
आग भी नहीं जला सकती ।


तारीख: 30.06.2017                                    जय कुमार मिश्रा









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