मेरे दिल का दरिया बार-बार रुख बदलता रहा |
शैतानी ताकतों से कल शहर मेरा जलता रहा।।
यूं नहीं कि उन्हें रोकने की मुझमें ताकत न थी।
कोई साथ न था तो ख्याल ये निकलता रहा।।
मेरे दिल का दरिया..............................
पुकारती रहीं चीखें मदद के लिए पत्थरों को।
मैं तो इंसान था पर क्यूं कल पत्थर बना रहा ?
मुझे मौत का डर था या मजबूरी थी मेरी।
सुबह तक सवाल ये मन में चलता रहा।।
मेरे दिल का दरिया..............................
जो गैरों और अपनों के लिए बराबर थीं कभी।
वो दुआएं अपनों के लिए करता रहा।।
वो नज़र जो मुर्दा हो गई मज़हब के लिए
उस मुर्दा नज़र को नज़रअंदाज़ करता रहा।
मेरे दिल का दरिया..............................
मरते कटते रहे लोग आपस में न जाने किस धर्म के लिए ?
पर खून का रंग आज भी सबका लाल ही रहा।।
मासूम चेहरों और ज़ख्मी लोगों के लिए।
मेरे पास कोई खुशी कोई मलहम नहीं रहा।।
मेरे दिल का दरिया..............................
जिस भगवान और ख़ुदा के लिए बह रहा था लहू।
मैं हैरान था वो तो अपने घर आराम से बैठा रहा।।
कलम की ज़ुबां को कैद कर लिया था जंजीर ने ।
एक हेमन्त था जो बस हाथ मलता रहा।
मेरे दिल का दरिया..............................