हाथी घोङा ऊंट रानी, इक वजीर और आठ पैदल
चौसठ घरों में झरझर बहती, शतरंज की कलकल
हर एक की अलग चाल, हर एक की अलग पहचान
बङे बङे नाम सबके, पर पैदल के पीछे छिपे मकान
सबसे आगे छाती जिसकी, चार गुना है संख्याबल
एक घर की पहुंच दी उसको , किमत सबसे निर्बल
जैसे चाहा चलवाया इनको, अतिलघु आकार दिया
जब भी आयी विपदा कोई,इन बेचारों को मार दिया
ऐसी ही शतरंज बिसातें, हर और बसी हैं इस जग में
नजर घुमा कर देख जरा, कुचल रहे हैं ये पग पग में
बीज बोवता है इक पैदल, फसल नहीं है खुद घर पे
हाथी बनकर बैंक खा रहा, ब्याज जैसी सूंड है सर पे
दूजी पैदल इक अध्यापक, बस सीधी राह सिखाता है
लेकिन पीछे ऊंट पल रहा, जिसे टेढ़ा चलना भाता है
तीजी पैदल खींचे रिक्शा, जिस्म अढाई कर लेता है
पीछे बैठा घोङा देखो,जब जी चाहे चढाई कर देता है
इक पैदल मांजे बर्तन, छोटू कह के पुकारा जाता है
होटल मालिक बने वजीर से, पर रोज मार ये खाता है
इक पैदल बिक गयी बाजार, अब घुंघरू बांधे रोती है
पीछे इसके रानी बैठी, पर किस्मत आंखें मूंदें सोती है
शतरंज में बस सोलह पैदल, सोलह सौ हैं बाहर इसके
तंबू बनाकर खुद ही भीगती, कब पलटेंगे दुर्दिन इसके
हाथी घोङों नजर सम्भालो, मत इनको यूं बेजार करो
आखिरी खाने हैं ये पहुंचने वाली,
बस थोड़ा सा इंतजार करो........
बस थोड़ा सा इंतजार करो........