तेरे सिवा कासे कहूं
कासे पीड़ा बांटू कान्हा।
सुमिरन सुधि जीवन संसृति
श्वांसे करती तेरी स्मृति।
अंचल में भर करुण हास
वैभव विलास विलुप्त आस।
आंखों से बहता भाव विन्यास
मिला भाग्य या खगोल शास्त्र।
थक पलकों पर बैठी वेदना
रुदन रोदन मौन संवेदना।
नील नभ, निलय है किसका
भूले भ्रमित विचरते खग का।
प्राण पुंज के स्वामी साजन
कर्म कारक सब केशव माधव।
मधुर मोहक मुस्कान की महिमा,
दृष्टिगत केवल आराध्य की प्रतिमा।