तुम गाते हो
गाते ही जाते
अपना वही
राग पुराना।
भूख मिटाने,
तन ढकने,
सिर छिपाने का।
कितने दिन बीते
कितने युग बीते
कितने राजा आए गए
कितनी सत्ताऐं बनी मिटी
कितनी सरकारें आई गई
कितने वादे किए गये
कितनी योजनाएं बनी,
तुम्हारा राग बदलने की
पर न,
तुम बदले
न बदला,
वो राग पुराना
न भूख मिटी
न तन ढका
न सिर छिपा
आज भी
खड़े हो
खुले आसमान में
तुम गाते हो
गाते ही जाते
अपना वही
राग पुराना
भूख मिटाने,
तन ढकने,
सिर छिपाने का।