मैं युगों से प्यासा पपीहा हूँ, तुम वर्षा बनकर आ जाओ !
हर रंग ज़माने का झूठा, तुम अपना रंग लगा जाओ !!
रूह को मेरे हर्षित कर दो,तुम फागुन बनकर आ जाओ !
ओढ़ के चुनर प्रेम रंग की , मरु जीवन में छा जाओ !!
मैं मंत्रमुग्ध हो जाऊंगा, तुम प्रेम से प्रीत लगा जाओ !
मैं रंग-गुलाल बन जाऊँगा, तुम ख़ुशबू बनके समा जाओ !!
होंठों से तुम रंग लगा के, सतरँगी सा कर जाओ !
मेरे सीने की धड़कन को, अतरंगी सा कर जाओ !!
ओ मृगनयनी, वर्षाधारा, पायल छनकाती आ जाओ !
बनकर के तुम चाय का प्याला, अन्तर्मन महका जाओ !!
मैं युगों से प्यासा पपीहा हूँ, तुम वर्षा बनकर आ जाओ !
हम थाल सजाएँ रंगों का , तुम प्रीत का रंग लगा जाओ !!
मैं युगों से प्यासा पपीहा हूँ, तुम वर्षा बनकर आ जाओ !!!