तुम वर्षा बनकर आ जाओ

मैं युगों से प्यासा पपीहा हूँ, तुम वर्षा बनकर आ जाओ !

हर रंग ज़माने का झूठा, तुम अपना रंग  लगा   जाओ !!

 

रूह को मेरे हर्षित कर दो,तुम फागुन बनकर आ जाओ !

ओढ़ के चुनर प्रेम रंग की ,   मरु  जीवन  में छा जाओ !!

 

मैं मंत्रमुग्ध हो  जाऊंगा,   तुम  प्रेम से  प्रीत  लगा  जाओ !

मैं रंग-गुलाल बन जाऊँगा, तुम ख़ुशबू बनके समा जाओ !!

 

होंठों   से  तुम  रंग  लगा  के,  सतरँगी  सा  कर  जाओ !

मेरे   सीने  की  धड़कन  को,  अतरंगी  सा  कर  जाओ !!

 

ओ मृगनयनी, वर्षाधारा,  पायल  छनकाती  आ  जाओ !

बनकर के तुम चाय का प्याला, अन्तर्मन महका  जाओ !!

 

मैं युगों से प्यासा पपीहा हूँ,  तुम वर्षा बनकर आ जाओ !

हम थाल सजाएँ रंगों का , तुम प्रीत का रंग लगा जाओ !!

मैं युगों से प्यासा पपीहा हूँ, तुम वर्षा बनकर आ जाओ !!!


तारीख: 18.08.2019                                    प्रकाश द्विवेदी









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