वो वक़्त भी एक वक़्त था
जब मिले थे इक लँबे अरसे बाद
अपने वक़्त से पहली बार
वक़्त कुछ इस कदर था
वो अपना वक़्त देने के लिए
मेरे वक़्त में आई थी
उस वक़्त मैं उनके साथ बिताये
पुराने वक़्त में खोया था
सोच रहा था उस वक़्त को
जब हम कभी स्कूलों में
जब अपना वक़्त एक साथ बिताये थे
उनके बचपन का वो वक़्त
मेरे बचपन का वो वक़्त
वो मस्त थी इस वक़्त में
हम खोये थे उस वक़्त में
उस वक़्त पड़ी थी
मेज में चाय की दो प्याली
वो कुछ वक़्त चाय की प्याली को देती
कुछ वक़्त मुझे
उस वक़्त भी मै उनकी धुन में खोया था
उस वक़्त भी मेरी निगाहें उन पे थमी थी
वो बोली अरे चाय
शायद हम भूल गए थे इस वक़्त को
फिर शुरु हुआ इक वक़्त
उस वक़्त उनकी निगाहें प्याली पे थी
जिस वक़्त मेरी निगाहें उनके चहरे पे
कभी हम चाय को वक़्त देते
तो कभी एक दूजे को
जिस वक़्त उनकी निगाहें चाय की प्याली पे होती
उस वक़्त मेरी निगाहें उन पे
जिस वक़्त उनकी निगाहें मुझ पे होती
मेरी चाय की प्याली पे
उस वक़्त शायद हम छिप छिप के
इक दूसरे को वक़्त दे रहे थे
चाय की प्याली के साथ तो कभी
उन के चाँद जैसे चहरे के साथ
वक़्त
कब बीत गया पता न चला
फिर इक वक़्त आया जब हम चलने
को तैयार हुए
उस वक़्त हमें लगा जैसे वक़्त बड़ा कम है
क्यों न कह डाले दिल का हाल
जो उस वक़्त से दिल के अंदर इक कोने में बैठा है
उस वक़्त भी शायद क्या सोचे जो कह ना पाये
उस वक़्त से दबी हाल
फिर इक वक़्त दे के वो चली गई
कह ना पाये उस वक़्त भी दिल का हाल
आज भी इंतज़ार है दिल्ली की गलियो में
आजमगढ़ में बिताया वो वक़्त
फिर ना जाने कब आएगा वो वक़्त
जब हम वो और हमारे साथ वो चाय की प्याली हो
अब जब भी आये वो वक़्त बया कर देंगे
वो सतरह साले पुराने वक़्त का हाल
फिर से आये वो वक़्त
वो वक़्त भी क्या वक़्त था