यादें!!

मैं राह चलते अकसर खो जाया करती हूं,
खुदी को अपनी यादों में डुबाकर अपने आप को पाया करती हूं।

खिड़की से बाहर झांकते हुए, खिल-खिलाते बच्चों में अपना बचपन खोजती,
जाने कहॉं गई वो मासूमियत, वो शरारत आैर वो हँसी। 

एक दिन सपने में एक सुनहरे बीते पल ने दसतक दी, 
और फिर सवेरे होठों ने एक मीठी मुसकान ओढ़ ली। 

इन में से कुछ गुज़रे लम्हें हमें कुछ सिखा भी गए, 
कुछ हंसा गए तो कुछ रुला भी गए। 

हर याद है कीमती, इसे रखना सम्भालकर दिल के किसी कोने में, 
पर ये ना भूलना कि ज़िंदगी तो ऐसे ही है चलती। 

हर नई सूरज की किरण एक और तोहफा लाएगी, 
यादों की डिब्बिया और भर जाएगी। 

तू भी बन जाना किसी की यादों का हिस्सा कभी,
और हो जाना अमर यूहीं। 


तारीख: 02.07.2017                                    नुपूर गुप्ता









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