यादों के परतों में

कोई हमेशा के लिए
कहाँ जाता है
यादों के परतों में
थोड़ा-थोड़ा रह जाता है..

कभी कोहरा बनके 
छाता है नज़रों के सामने
छूने जाओ हाथों से तो
गुम हो जाता है

जिसके होने से
मन सावन सा
हुआ करता था
उसके जाने से मानो
सुकून का हर बूंद
बारिश के पानी सा
तार और रस्सियों पर
अटक सा जाता है

कहते हैं जाने वाले
सितारें बन जाते हैं
तो फिर क्यों उन्हें
जीते जी मिट्टी या
धूल कहा जाता है

कोई अपना चला जाए
तो सूना हो जाता अपनेपन
का आंगन मगर 
दिल में सदा के लिए 
फिर भी वो घर कर जाता है

कोई हमेशा के लिए 
कहाँ जाता है
यादों के परतों में 
थोड़ा-थोड़ा
रह जाता है।


तारीख: 27.02.2024                                    सविता दास सवि






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