यथार्थ जिवन

कौन है अपना, कौन बेगान?

पूछता है ये दिल दीवाना।

तहे उम्र जिसको अपना कहते,

जिसके लिये हम हर गम सहते।

मौत पे क्यों है छोड़ देता अकेला

जाने को ये सारा ज़माना?

उम्र भर करें हम पैसा-पैसा।

अनोखा है भला खेल ये कैसा?

छूटती है जब स्वांस ये अपनी,

साथ ना देता कोई खजाना।।

मायावी संसार के ये हैं,

मतलाबी सारे रिश्ते-नाते।

जीवन रहते भजलो हरी नाम को,

ताकी मरण पे ना पड़े तुझे पछताना।

कौन है अपना, कौन बेगाना?

पूछता है ये दिल दीवाना।।


तारीख: 22.02.2024                                    राकेश कुमार साह









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