ज़िद

आज ज़िद की है कुछ कर दिखाने की,
दुनिया में अपनी पहचान बनाने की,
मंजिल को हर हाल मे पाने की,
आज ज़िद की है कुछ कर दिखाने की।

हौसले को अपने फौलाद बनाने की,
सफलता को अपने सर का ताज़ बनाने की,
खुद के अंदर झाँकने की,
और खुद में खुद को ढूँढ पाने की,
आज ज़िद की है कुछ कर दिखाने की।

गमों में भी खुशियाँ तलाशने की,
नसीहतों को अमल में लाने की,
अपनों से न कभी दूर जाने की,
परायों को भी अपना समझ गले लगाने की,
आज ज़िद की है कुछ कर दिखाने की

सदियो के रिवाजों को फिर से बनाने की,
खुद पे लगी बंदिशें हटाने की,
समाज के ढर्रे को छोड़ कुछ अपना बनाने की,
दूसरों को भी सच का आईना दिखाने की,
आज ज़िद की है कुछ कर दिखाने की।

उनकी साजिशों को नाकाम कर पाने की,
राहों से अपने पत्थरों को हटाने की,
सोच को अपने आज आज़माने की,
हर चीज़ को आज आसान बनाने की,
आज ज़िद की है कुछ कर दिखाने की।

उनकी नादानियों को माफ़ कर पाने की,
अपनी गलतियों को पहचान पाने की,
उनके तसव्वुर में सँवर पाने की,
सबसे प्यार का रिश्ता बनाने की,
आज ज़िद की है कुछ कर दिखाने की।

अपनी हदों का आज पता लगाने की,
संभावनाओं के सागर में डुबकी लगाने की,
हर किसी को खुल कर हँसा पाने की,
किसी के गम में उसके आँसू बाँट पाने की,
आज ज़िद की है कुछ कर दिखाने की।

उसको भी थोड़ा और समझ पाने की,
आँखों में उसकी हमेशा के लिए बस जाने की,
उन ना भाने वाले शोर को अनसुना कर पाने की,
ना भाने वाले मुद्दों पर कुछ बोल पाने की,
आज ज़िद की है कुछ कर दिखाने की।

बस खुद को थोड़ा और जान पाने की,
अपनी सीमाओं को तोड़ आगे बढ़ जाने की,
खुद के लिए नई राहें बनाने की,
मंजिलों को खुद का पता बताने की,
आज ज़िद की है कुछ कर दिखाने की।             


तारीख: 10.06.2017                                                        अल्फाज़-ए-आशुतोष






नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है