डोली में लगते दो कंधे, अर्थी में लगते हैं चार जीवन की ये कैसी माया बिन रूह बदन है बोझिल भार
जिस तरह ये रीत अनोखी उसी मानिंद है अपना प्यार तुम बिन मैं इक खाली काया तड़पा फ़िरता यूँ बारम्बार