कैसी यह जुम्बिश है सफर-ए रहगुज़र में एक पाक सा एहसास जरर्रे जर्रे में नीलाम हुआ है.....!
बा-खुदा इश्क़ पहचान था एक नूर-ए-खुदाई की तो कैसे कतरा कतरा वो अपनी सौफ़ियात से फ़िरा है ..................!
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