खुद ही से वाकिफ नहीं

खुद ही से वाकिफ नहीं हुआ हूं कई रोज से
आजकल मुझे कोई मयखाना जो नसीब न हुआ

बीतती हुई उम्र इशारा कर गई पैगाम देकर
साकी सा मेहरबां तेरे साथ कोई शरीक न हुआ

चेहरे पे मासूमियत का हवाला दे हमदर्दी जता गए
मेरी बिखरी ख्वाबों की माला चुनने कोई करीब न हुआ

तकाजा भी क्या करें अब उन नामुक्कमल हसरतों का
जिनकी चाह में आजतक भी ललित खुशनसीब न हुआ


तारीख: 15.10.2017                                    ललित ढिल्लों









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