कैसी उधेड़बुन हैं
मन की अजीब धुन है
सोचता कुछ और है
पर
करता कुछ और ही है,
कैसी उलटफेर हैं
मन का अजीब खेल है
सिरफिरा सा होने लगा
फिर बहकने लगा
परिदो सा उड़ने लगा
कैसी उधेड़बुन हैं।।
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