मन का जयघोष

 

एक देश का राजा अपनी कुलदेवी के मंदिर में जा रहा था। ऊंची पहाड़ी पर उस मंदिर में देवी के दर्शन हेतु राजा अकेला नहीं बल्कि बहुत से व्यक्तियों के साथ यात्रा कर रहा था। लगभग सभी व्यक्ति ललाट पर पीला चंदन लगाए, देवी के चित्र की चुनरी सिर पर बांधे थे। उनमें से कुछ ने गले में महंगे केमरे लटका रखे थे, कुछ ने माइक थामे हुए थे तो कुछ ने अपनी कमीज़ की जेब में विश्वसनीय कलम लगा रखी थी। कुछ कुर्ता-पजामाधारी राजा के सुरक्षा गार्ड्स के साथ-साथ चल रहे थे। चलते-चलते उन कुर्ता-पजामाधारीओं में से एक तेज़ स्वर में बोला, "ज़ोर से बोलो"। बाकी सबने बिना भी समय गवाएं जोशीले स्वर में जयघोष किया, "जय माता दी।" वह कुर्ता-पजामाधारी अब झूमते हुए मधुर स्वर में चिल्लाया, "प्रेम से बोलो..."। पुनः बाकी सभी का उसी जोश से स्वर गूंजा, "जय माता दी।" राजा मुस्कुरा दिया। काफिला यों ही देवी माँ की जय बोलते हुए और राजा के चेहरे की मुस्कान देखते हुए ऊर्जावान हो पहाड़ी पर चढ़ता रहा। बीच-बीच में केमराधारी राजा की तस्वीर ले लेते तो कभी माइकधारी केमरे के सामने खड़े होकर राजा के भक्तिभाव के बारे में कहने लगते। कलमधारी भी अपनी-अपनी डायरियों में राजा की विभिन्न मुद्राओं को लिख रहे थे कि आखिर उनका लोकप्रिय राजा इतना सम्पन्न और शक्तिशाली होकर भी देवी के मंदिर जाने के लिए उड़नखटोले का प्रयोग तक नहीं करता था।

कष्टसाध्य पर्वतारोहण के पश्चात काफिला अपने गंतव्य तक पहुंचा। मंदिर पहुँचते ही राजा देवी की मूर्ति वाले कक्ष में गया और देवी को प्रणाम किया। उसके पीछे बाकी सभी ने भी देवी माँ को नमस्कार किया। नारा फिर लगा, "प्रेम से बोलो..."। सुनते ही फिर सभी ने उत्तर दिया, "जय माता दी।" हालांकि थकान के कारण स्वर मद्धम हो गया था।

वहाँ खड़े पुजारी ने राजा को एक शाल भेंट की जिसे ओढ़ कर राजा देवी माँ की भव्य मूर्ति के समक्ष बैठ गया और ध्यान लगाने लगा। उस समय राजा के चित्र लेने की होड़ सी लग गयी। अब पुजारी ज़ोर से बोला, "प्रेम से बोलो..."। सभी ने उसी जोश से उत्तर दिया, "जय माता दी।" पुजारी प्रसन्नता भरे स्वर में आगे बोला, "आप सभी का सौभाग्य है कि आप माता के दरबार में हाजिरी लगाने आए। अब हमारे राजा कुछ घंटे देवी माँ के ध्यान में बैठेंगे। माँ भी बड़ी प्रसन्न है कि आज बेटा आया है। हम माँ-बेटे को अकेले छोड़ देते हैं। आइये आप सभी पास वाले कक्ष में चलिये।"

राजा और पुजारी को छोडकर बाकी सभी उस कक्ष से दूसरे कक्ष में चले गए। राजा वहीं ध्यान में बैठा रहा। सभी के कक्ष से बाहर जाते ही पुजारी ने भी बाहर आकर उस कक्ष का दरवाजा बंद कर दिया और उसी कक्ष में चला गया, जिसमें अन्य लोग गए थे। वहाँ जाकर वह मंच पर खड़ा हुआ और सभी से संबोधित होते हुए बोला, "यह एक ऐसा विचित्र कक्ष है जिसमें आकर कोई झूठ नहीं बोल सकता। जब भी आप बोलोगे मुंह से सच ही निकलेगा। आइये देवी माँ का स्मरण करते हैं। ज़ोर से बोलो... प्रेम से बोलो..."

सुनते ही वहाँ खड़े सभी श्रद्धालुओं ने पूरे जोश के जयघोष किया, इतने समय में पहली बार उन सभी का स्वर एक साथ गूँजा, लेकिन शब्द पहले से अलग थे। अब वे उद्घोष कर रहे थे - "जय सत्ता दी।"


तारीख: 13.03.2020                                    डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी









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