घर से परायी हुई
तो नये लोगों में आयी।
जैसे धान को क्यारियों से निकालकर
ले जाया जाता है खेतों में।
फिर उन्हें दिया जाता है बहुत सारा पानी
जड़ें जमाने के लिये।
पर नई जगह में हमें वो पानी मिले
ऐसी आशा बहुत कम ही होती है।
सम्हलना होता है अपने ही बलबूते पर
और चलना होता है
जीवन का एक एक कदम।
वहाँ कोई खुद को नहीं बदलता
हमें ही बदलना होता है खुद को।
कोई इन्तजार नहीं करेगा
हमारे धीरे धीरे सीख जाने का।
हम ढाल लेते है खुद को
सबकी जरूरतों के हिसाब से।
और चल पड़ती है गाड़ी
हिस्सा बनते जाते है हम सबकी जरूरतों का।
हमारे बिना पत्ता भी नही हिल पाता।
सुना था जिंदगी प्यार से चलती है
पर यहां तो जिंदगी सिर्फ
जरुरत के मुताबिक चलती है।
प्यार कहाँ है इस जिंदगी में ?
मैं आज भी उस प्यार की खोज में हूँ ।