जाने कहां खो गया वो

आते - जाते मौसम की तरह
फूलों में मंडराते भौंरो की तरह,
अंधेरों में जलता चिराग था वो
जनता से करता प्यार था वो ।

दुनिया में फैला उजाला था वो
आसमानों में चमकता सितारा था वो,
लाखों लोगों की शान था वो
मात्रभूमि के लिए देने वाला जान था वो।

धूप में चलता राही था वो
दुश्मनों से लड़ता सिपाही था वो,
लोगों का अभिमान था वो
अपनी मां का लाल था वो ।

एक दिन ना जाने किस ओर गया वो
पिछे अपने छोड़ मोहोब्बत का शहर गया वो,
अपनों को तनहा छोड़ गया वो
गैरों से नाता जोड़ गया वो ।

अपने निशान छोड़ गया वो
लौट के कभी न उस ओर गया वो,
शायद मौत की गोद में सो गया वो
कोई न जाने कहां खो गया वो ।।        


तारीख: 14.04.2024                                    संतोष कुमार




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